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उ॒क्षा म॒हाँ अ॒भि व॑वक्ष एने अ॒जर॑स्तस्थावि॒तऊ॑तिर्ऋ॒ष्वः। उ॒र्व्याः प॒दो नि द॑धाति॒ सानौ॑ रि॒हन्त्यूधो॑ अरु॒षासो॑ अस्य ॥

English Transliteration

ukṣā mahām̐ abhi vavakṣa ene ajaras tasthāv itaūtir ṛṣvaḥ | urvyāḥ pado ni dadhāti sānau rihanty ūdho aruṣāso asya ||

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Pad Path

उ॒क्षा। म॒हान्। अ॒भि। व॒व॒क्षे॒। ए॒ने॒ इति॑। अ॒जरः॑। त॒स्थौ॒। इ॒तःऽऊ॑तिः। ऋ॒ष्वः। उ॒र्व्याः। प॒दः। नि। द॒धा॒ति॒। सानौ॑। रि॒हन्ति॑। ऊधः॑। अ॒रु॒षासः॑। अ॒स्य॒ ॥ १.१४६.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:146» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (उर्व्याः) पृथिवी से (महान्) बड़ा (उक्षा) वर्षा जल से सींचनेवाला (अजरः) हानिरहित (ऋष्वः) गतिमान् सूर्यः (एने) इन अन्तरिक्ष और भूमिमण्डल को (अभि, ववक्षे) एकत्र करता है (इतऊतिः) वा जिससे रक्षा आदि क्रिया प्राप्त होतीं ऐसा होता हुआ (पदः) अपने अंशों को (नि, दधाति) निरन्तर स्थापित करता है (अस्य) इस सूर्य की (अरुषासः) नष्ट न करती हुई किरणें (सानौ) अलग-अलग विस्तृत जगत् में (ऊधः) जलस्थान को (रिहन्ति) प्राप्त होती हैं वा जो ब्रह्माण्ड के बीच में (तस्थौ) स्थिर है उसके समान तुम लोग होओ ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को जैसे सूत्रात्मा वायु, भूमि और सूर्यमण्डल को धारण करके संसार की रक्षा करता है वा जैसे सूर्य पृथिवी से बड़ा है, वैसा वर्त्ताव वर्त्तना चाहिये ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यथा उर्व्या महानुक्षा अजर ऋष्वः सूर्य एने द्यावापृथिव्यावभि ववक्षे इत ऊतिः सन् पदो निदधाति अस्यारुषासः सानावूधो रिहन्ति यो ब्रह्माण्डस्य मध्ये तस्थौ तद्वद् यूयं भवत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (उक्षा) सेचकः (महान्) (अभि) (ववक्षे) संहन्ति। अयं वक्षसङ्घात इत्यस्य प्रयोगः। (एने) द्यावापृथिव्यौ (अजरः) हानिरहितः (तस्थौ) तिष्ठति (इतऊतिः) इतः ऊती रक्षणाद्या क्रिया यस्मात् सः (ऋष्वः) गतिमान् (उर्व्याः) पृथिव्याः (पदः) पदान् (नि, दधाति) (सानौ) विभक्ते जगति (रिहन्ति) प्राप्नुवन्ति (ऊधः) जलस्थानम् (अरुषासः) अहिंसमानाः किरणाः (अस्य) मेघस्य ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा सूत्रात्मा वायुर्भूमिं सूर्यं च धृत्वा जगद्रक्षति यथा वा सूर्यः पृथिव्या महान् वर्त्तते तथा वर्त्तितव्यम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूत्रात्मा वायू, भूमी व सूर्यमंडलाला धारण करून जगाचे रक्षण करतो व जसा सूर्य पृथ्वीहून महान आहे, तसे माणसांनी आचरण करावयास हवे. ॥ २ ॥